26 जनवरी के घटनाक्रम के बाद किसान संघर्ष की स्थिति पर संयुक्त वक्तव्य

 -  -  93


26 जनवरी की घटनाक्रम के बाद किसान संघर्ष की स्थिति पर यह वक्तव्य विभिन्न हस्तियों और व्यक्तियों -अजयपाल सिंघ बराड़, राजपाल सिंघ संधू, देवेंद्र सिंघ सेखों, परमजीत सिंघ, मनधीर सिंघ, प्रोफ़ेसर जगमोहन सिंघ, गुरमीत सिंघ, जसपाल सिंघ मंझपुर द्वारा संयुक्त राय के बाद जारी किया गया है। किसान, दिल्ली सिंहासन के दरवाज़े पर, प्रकृति और किसान के अनुकूल कृषि के एक नए मॉडल के निर्माण के लिए, सर्व सृष्टि के भले के लिए और अपने अधिकारों के लिए डटे हुए हैं। इस नए मॉडल को बनाने से पहले, हमारा मुख्य लक्ष्य दिल्ली के सिंहासन द्वारा पारित तीन तथाकथित समर्थक कॉर्पोरेट कृषि क़ानूनों को निरस्त कराना है।

संघर्ष के मद्देनज़र, 26 जनवरी, 2021 को किसान परेड के दौरान हुई घटनाओं में सभी संबंधित लोगों की भूमिका पर धैर्य और ठंडे दिमाग से विचार करने की आवश्यकता है।

 

पहला और सबसे मुख्य समूह,आम किसान और लोगों का है जो इस किसान संघर्ष की रीढ़ की हड्डी हैं। यह वे लोग हैं जिन्होंने इस मोर्चे को दिल्ली के दरवाज़े पर लाया है।लोगों ने नेताओं की घोषणाओं को उनके भाषणों में और गीतकारों और गायकों द्वारा गाये गीतों द्वारा उत्पन्न हुए नक्शे को पूरा करने का हर संभव प्रयास किया है। नेतागण अपनी घोषणाओं और अभियानों से पीछे हटे हों पर लोग पीछे नहीं हटे।

हर महत्वपूर्ण चरण में, चाहे वह 26 नवंबर हो या 26 जनवरी, लोगों ने नेताओं की अनुपस्थिति में नेता-रहित होने के बावजूद अनुशासन दिखाया है। बल का प्रयोग सिर्फ रास्ते की बाधाओं को दूर करने तक सीमित था।पुलिस के साथ झड़पों के बावजूद, कई अवसरों पर, लोगों ने खुद पुलिस कर्मियों और महिला पुलिस कर्मियों को बचाया है। 26 जनवरी को रिंग रोड के माध्यम से लाखों लोगों ने दिल्ली में प्रवेश किया, पर किसी की निजी संपत्ति या कोई सार्वजनिक संपत्ति क्षतिग्रस्त नहीं हुई। किसी का अनादर नहीं किया। लाल किले में नेताओं और गीतों द्वारा विकसित भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हुए, लोग खुद एक जिम्मेदार नेता की उपस्थिति के बिना दिल्ली के बाहर अपने शिविर में लौट आए।

हालाँकि, अगर किसानों की परेड सुचारू रूप से नहीं चली और परेड में शामिल किसानों को ठंड में दिन-रात भूखे-प्यासे रहना पड़ा, तो दिल्ली तख्त मुख्य रूप से इसके लिए जिम्मेदार है क्योंकि सरकार लगातार इस मुद्दे को घसीट रही है और वहां कोई हल नहीं निकाल रही।मुद्दे को लटकाकर, सरकार शांतिपूर्ण और सब्र लोगों में आक्रोश की स्थिति पैदा कर रही है। 26 जनवरी से पहले ही, जब यह स्पष्ट हो गया कि जनता किसानों की परेड के लिए दिए गए मार्ग को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, फिर भी सरकार ने न तो रिंग रोड पर परेड को मंजूरी दी और न ही कोई अन्य सम्मान जनक विकल्प दिया। सरकार की विफलता के दो कारण हो सकते हैं – या तो सरकार ने जानबूझकर ऐसा करने की अनुमति दी है; या सरकार खुद एक ‘निर्णय और शासन पक्षाघात’ (डिसिशन एंड गवर्नेंस पैरालिसिस) से पीड़ित है। लेकिन दोनों मामलों में, 26 जनवरी की स्थिति और घटनाक्रम के लिए सरकार पूरी तरह से जिम्मेदार है।

Kissan Morcha

दूसरी बात यह है कि संयुक्त किसान मोर्चा 26 नवंबर को दिल्ली चलो कार्यक्रम के दौरान लोगों की भावनाओं को समझने और लोगों का नेतृत्व करने में विफल रहा था लेकिन फिर भी लोगों ने ‘दिल्ली चलो’ को सही अर्थों में लागू करके संघर्ष का नेतृत्व करने का अवसर उनको दोबारा दिया।संयुक्त किसान मोर्चा किसानों के संघर्ष के दौरान हो रही स्थिति को समझने और उसका सामना करने में नाकाम रहा है। मोर्चा ने लोगों की भावनाओं और सच्ची आवाज़ों को नज़रअंदाज़ किया। दिल्ली में परेड की घोषणा संयुक्त किसान मोर्चा ने 26 जनवरी को की थी।

संयुक्त किसान मोर्चा के कुछ महत्वपूर्ण नेताओं (जिनके वीडियो सोशल मीडिया में देखी जा सकती है) ने 26 जनवरी की किसान परेड के लिए अपने दिल्ली जाने को लेकर अपने भाषणों और संदेशों से अनुकूल माहौल बनाया। मोर्चा के नेतृत्व ने पहले अनुभव से कोई सबक लिए बिना 26 जनवरी का कार्यक्रम फिर दिया था जिसका नेतृत्व करने की क्षमता उनमे नहीं थी । संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा 26 जनवरी के लिए दिए गए मार्ग को लेकर लोगों की असहमति तारीख से पहले ही प्रकाश में आ गई थी।

यहां तक कि संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल कुछ किसान संगठन तथा मोर्चा के बाहर के अन्य किसान संगठन भी इस मार्ग से सहमत नहीं थे, फिर भी संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने परेड के मार्ग पर असहमति वाले लोगों को समझाने अथवा भरोसा दिलाने में नाकाम रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता स्वयं ही अपने द्वारा उत्साहित की गयी भावनाओं के तहत कार्य करने वाले युवाओं के विरुद्ध दोष लगा के और मंच से कई युवाओं के नाम तक ले के गलत बोलते हैं और गद्दारी के फरमान जारी कर रहे हैं। ऐसा करके कुछ किसान नेता एक बार फिर अपनी नाकामी और असमर्थता को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। संयुक्त मोर्चा के गंभीर नेताओं को राजनीतिक महत्वाकांक्षा वाले नेताओं पर लगाम लगाने की जरूरत है।

तीसरा, उन किसान संगठनों और व्यक्तियों का हिस्सा है जिन्होंने 26 जनवरी को लोगों की भारी भावनाओं के तहत नेतृत्व करने की कोशिश की, लेकिन लोगों की भावनाओं और लोगों की तीव्र गति को योजनाबद्ध करने में और सँभालने में पूरी तरह सफल नहीं हो सके । उन्हें भविष्य में भी और गंभीर पहल करने की जरूरत है ।
इस घटना के दौरान दिल्ली पुलिस ने करीब २०० युवकों को कथित तौर पर गिरफ्तार करने की सूचना है । आईटीओ के पास एक युवक की मौत भी हो गई है। शासन भी गिरफ्तार लोगों को बुनियादी और कानूनी सहायता प्रदान करता है लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं द्वारा गिरफ्तार किए गए युवकों को भूल जाना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। किसान संघर्ष के हर हमदर्द और मानवाधिकार के समर्थकों को इन युवाओं का साथ देना चाहिए का सार लेना चाहिए और उनके खिलाफ हो रही कार्रवाई के खिलाफ कड़ा विरोध व्यक्त करना चाहिए।

उतार-चढ़ाव संघर्ष का हिस्सा हैं। यह संघर्ष मानवता की भलाई के मुद्दे से संबंधित है, जैसा कि भारी जन भागीदारी और समर्थन से स्पष्ट है। जरूरत अब अतीत से सीखने और संघर्ष को पटरी पर लाने की है। नेतृत्व के कई वर्गों द्वारा किए जा रहे दमनकारी और घातक दृष्टिकोण के मद्देनजर, संयुक्त किसान मोर्चा के बाहर संघर्ष के लिए सहानुभूति रखने वाले हिस्से और लोगों को इस आंदोलन को एक मजबूत पायदान पर लाने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

93 recommended
811 views
bookmark icon

Write a comment...

Your email address will not be published. Required fields are marked *